प्रेम अवस्थी: पत्रकारिता की मलाई का असली खिलाड़ी!

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बाराबंकी:अगर पत्रकारिता की दुनिया में "मलाई" काटने का कोई स्वर्णिम पुरस्कार होता, तो वरिष्ठ पत्रकार प्रेम अवस्थी निस्संदेह इसके प्रथम विजेता होते। बाराबंकी की पत्रकारिता में जो जुगाड़ तंत्र उन्होंने विकसित किया है, वह किसी पीएचडी रिसर्च से कम नहीं। जाने माने  वरिष्ठ पत्रकार दादा केपी शुक्ला जी के पीर बटावन के पीसीओ की साफ-सफाई से शुरू हुआ यह सफर, पत्रकारिता के ककहरा पढ़ने के बाद आखिरकार सत्ता की चौखटों और दुराचारी माफियाओं की गोद से होता हुआ अमर उजाला तक पहुंच गया।

*पत्रकारिता में महंत बी पी दास बाबा जी और तारिक भाई के छेनी-हथौड़े से तराशे गए थे प्रेम अवस्थी*

हर सफल व्यक्ति के पीछे एक गुरु होता है, और प्रेम अवस्थी के मामले में वह वरिष्ठ पत्रकार गुरु बाबा जी और तारिक भाई रहे। उनके निर्देशन में प्रेम अवस्थी ने कलम पकड़ी, जलवा सीखा,मगर जल्द ही समझ गए कि कलम की स्याही से ज्यादा ताकत "संबंधों" और "समीकरणों" में होती है। उन्होंने उस्तादों को किनारे लगाया और "आज" की ईमानदारी को छोड़कर हिंदुस्तान में अपने जलवे बिखेरने के बाद जागरण में मलाई निकालने का हुनर निखारा और अब अमर उजाला पर सवार होकर नई दिशा की ओर बढ़ने की तैयारी कर ली ।

*पत्रकारिता + शिक्षा मित्र = दोहरी मलाई!*

किसी ने सही कहा है, "जिसे मलाई खाना आता हो, उसे दही-चावल खाने की जरूरत नहीं पड़ती।" प्रेम अवस्थी ने इस सिद्धांत को जीवन में आत्मसात किया। पत्रकारिता से इतर, शिक्षा मित्र की कुर्सी भी संभाल ली, ताकि सरकारी नौकरी का भी सुख मिलता रहे। जब एक ही वक्त में खबर लिखकर अफसरों को प्रभावित किया जा सकता हो और दूसरी ओर सरकारी नौकरी का मजा लिया जा सकता हो, तो भला कोई क्यों पीछे हटे?नियम कानून होंगे किसी के लिए इनके तो चरण स्पर्श में हर हराम हलाल हो जाता है।

*बिल्डर, भू-माफिया, और अधिकारियों का चहेता*

प्रेम अवस्थी का नेटवर्क देखकर बड़े-बड़े राजनीतिक रणनीतिकार भी शर्मिंदा हो सकते हैं। अफसर हों या नेता, भू-माफिया हों या बड़े बिल्डर—सबके साथ इनके संबंध ऐसे हैं कि हर कोई इनके मायाजाल मकड़ी के जाले  में फंसने के लिए लालायित रहता है। ये जानते हैं कि कब किसके तलवे चाटने हैं और कब किसी के खिलाफ साजिश रचकर अपने जाल में फंसाना है।

*वरिष्ठ पत्रकार दादा केपी तिवारी जी के चरणों में समर्पण*

कभी केपी तिवारी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले प्रेम अवस्थी आज उन्हीं के साथ अमर उजाला में बिराजमान हैं। चरण स्पर्श की कला में निष्णात प्रेम अवस्थी ने अपने पुराने साजिशों को भुलाकर, नया जुगाड़ सेट कर लिया है। आखिर जो डूबते सूरज को प्रणाम करने की कला जानते हों, वे उगते सूरज को सलाम करना भी खूब जानते हैं।

*अमर उजाला को "मुबारकबाद"!*

अब जब प्रेम अवस्थी अमर उजाला की टीम में शामिल हो चुके हैं, तो अखबार की दिशा-दशा बदलना तय है। भ्रष्टाचारियों के प्रवक्ता, नेताओं के चरण सेवक, बिल्डरों के विज्ञापन एजेंट और अधिकारियों के परम प्रिय प्रेम अवस्थी के आगमन पर अमर उजाला को बधाइयाँ!

*प्रेम अवस्थी पत्रकारों को यह सीख देते हैं कि अगर पत्रकारिता में "आदर्शवाद" और "सच्चाई" से पेट नहीं भरता, तो "जुगाड़" और "मक्खनबाजी" से भविष्य उज्ज्वल किया जा सकता है। यह अलग बात है कि ऐसे उज्ज्वल भविष्य में पत्रकारिता की आत्मा हमेशा अंधकार में ही रहती है!*

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