इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन : सलेमपुर स्टेट, गंगागंज लखनऊ के राजा सैयद मोहम्मद सज्जाद ज़ैदी का इंतिक़ाल – तहज़ीब और इंसानियत का एक सुनहरा दौर खत्म,सलेमपुर में किए गए सुपर्द ए खाक

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हसनैन मुस्तफा

लखनऊ।नगराम से महज़ 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सलेमपुर स्टेट, गंगागंज से एक बेहद मार्मिक खबर आई है। इलाके की शान और तहज़ीब के अलमबरदार राजा सैयद मोहम्मद सज्जाद ज़ैदी साहब ने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके इंतिक़ाल की खबर से न सिर्फ़ लखनऊ बल्कि बाराबंकी और आसपास के क्षेत्रों में ग़म की लहर दौड़ गई।

उनका जसदे ख़ाकी आज सुबह 10 बजे सलेमपुर हाउस से ग़ुस्ल के लिए जामा मस्जिद तहसीनगंज लाया गया और तदफ़ीन  क़िला सलेमपुर स्टेट, गंगागंज में बड़े मजमे में की गई। इस मौके पर सहाफत के एडिटर अमान अब्बास भी मौजूद थे।

सलेमपुर स्टेट का इतिहास और रूहानी विरासत

सलेमपुर स्टेट अवध के नवाबी दौर से अपनी तहज़ीब, इल्मी माहौल और इंसानियत पर आधारित रहनुमाई के लिए मशहूर रही है। यहाँ के ज़ैदी ख़ानदान का ताल्लुक हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की नस्ल से है, और यही वजह है कि इस ख़ानदान ने सदियों तक अहलेबैत (अ.स.) की मोहब्बत और अज़ादारी को ज़िंदा रखा।

सलेमपुर क़िला, जो आज भी अपनी ऐतिहासिक शान से खड़ा है, उस दौर की निशानी है जब यह इलाका न सिर्फ़ राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक और मज़हबी रहनुमाई का मरकज़ हुआ करता था। हवेली की आलीशान तामीरात और नक़्क़ाशी आज भी उस बीते ज़माने की झलक पेश करती हैं।

आलीशान इमामबाड़ा – मोहब्बत और अकीदत की निशानी

सलेमपुर हवेली के अंदर बना आलीशान इमामबाड़ा अहलेबैत (अ.स.) से मोहब्बत और अकीदत की ज़िंदा मिसाल है। यह इमामबाड़ा महज़ एक इमारत नहीं बल्कि एक रूहानी पनाहगाह है, जहाँ सदियों से मजलिसें, मातमी प्रोग्राम और अज़ादारी का सिलसिला जारी है।

दो वर्ष पहले इसी इमामबाड़े में इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) के नायब, ग्रांड रिलिजियस अथॉरिटी आयतुल्लाह अली सिस्तानी के भारत में नुमाइंदे आगा सैयद अशरफ़ अली गर्वी साहब की रहनुमाई में समर दीनी तालीमी कैंप और अंसार-ए-महदी कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ था। इसमें मुल्क के कोने-कोने से आए स्टूडेंट्स, मुमताज़ शख्सियतों और आलिमों ने शिरकत की थी। इसने सलेमपुर हवेली को एक बार फिर इल्म और रूहानियत का मरकज़ बना दिया था।

गोमती किनारे की इल्मी विरासत

सलेमपुर हवेली गोमती नदी के किनारे बनी है। नदी के दूसरे छोर पर बसा जौरास गांव इल्म और आलिमों का एक अजीम ख़ज़ाना है।

यहीं से मौलाना बाक़र जौरासी साहब के बेटे मौलाना ग़ाफ़िर जौरासी, मौलाना सैयदैन जौरासी, इसलाह के एडिटर मौलाना जाबिर जौरासी साहब और इस दशक के मशहूर आलिमों में मौलाना हसनैन बाक़री, मौलाना आज़िम बाक़री और मौलाना सक़लैन बाक़री जैसे नामवर शख्सियतें निकली हैं। इन सबकी मौजूदगी ने इस इलाक़े को इल्मी और मज़हबी तौर पर बेमिसाल बना दिया है।

राजा सैयद मोहम्मद सज्जाद ज़ैदी – इंसानियत की मिसाल

राजा सज्जाद ज़ैदी साहब न सिर्फ़ एक खानदानी शख़्सियत थे बल्कि इल्म, तहज़ीब और इंसानियत की जीती-जागती मिसाल थे।

  • वे हमेशा ग़रीबों और मजबूरों की मदद के लिए आगे रहते।
  • उनकी महफ़िलें अदब और इल्म से सराबोर होतीं।
  • उनकी शख़्सियत में नर्मी, सादगी और अपनापन था, जो हर किसी का दिल जीत लेता था।

उनकी कोशिश यही रहती कि खानदानी शान महज़ हवेली और तामीरात तक सीमित न रहे बल्कि समाज की भलाई और इंसानियत की खिदमत में काम आए।

अज़ादारी और समाजी योगदान

सलेमपुर स्टेट हमेशा से मजलिसों, जुलूसों और अज़ादारी का एक अहम मरकज़ रहा है। यहाँ की हवेली सिर्फ़ रहन-सहन का ठिकाना नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक और मज़हबी धरोहर है।

नगराम की अंजुमन अब्बासिया, नगराम ऑर्गेनाइजेशन के सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा और अम्बर फाउंडेशन के चेयरमैन वफ़ा अब्बास ने राजा सज्जाद ज़ैदी के इंतिक़ाल पर गहरा ग़म ज़ाहिर किया और खानदान-ए-ज़ैदी को पुरसा पेश किया।

एक युग का अंत

राजा सैयद मोहम्मद सज्जाद ज़ैदी का इंतिक़ाल न सिर्फ़ उनके ख़ानदान के लिए बल्कि पूरे लखनऊ और बाराबंकी के समाज के लिए गहरा सदमा है। उनके जाने से एक ऐसे दौर का अंत हो गया है, जिसमें इंसानियत, तहज़ीब और दीनी सरपरस्ती अपनी बुलंदी पर थी।

दुआ है कि अल्लाह तआला राजा सज्जाद ज़ैदी को जन्नतुल फ़िरदौस में आला मुक़ाम अता फ़रमाए और अहले खानदान व अहबाब को सब्र-ए-जमील बख़्शे।
आमीन।


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