लखनऊ— तहज़ीब, अदब, खिदमत और रूहानियत का अनोखा संगम अगर कहीं देखा जाए तो वह है सज्जाद बाग। यह सिर्फ एक इलाका नहीं, बल्कि इंसानियत की वह बस्ती है, जहाँ हर घर से नेकी और भलाई की रौशनी निकलती है। यहाँ के लोग न सिर्फ तहज़ीब और अदब के लिए मशहूर हैं, बल्कि खिदमत-ए-ख़ल्क़ में भी हमेशा सबसे आगे रहते हैं।
*रूहानियत और खिदमत का संगम*
सज्जाद बाग की गलियां सिर्फ इमारतों से नहीं, बल्कि नेक दिलों से रौशन हैं। यह वही जगह है जहाँ इमामबाड़ा कायमा खातून है, जो डॉक्टर असद अब्बास ने अपनी वालिदा की याद में बनाया है। यहाँ हर किसी शहादत विलादत पर रूहानियत की हवाएं मजलिस मातम महफिल के लिए बारह महीने बहती है,
हर साल 25 मोहर्रम को "सज्जाद डे" के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन, पूरे भारत में यौमे सज्जाद के मौके पर मेडिकल और आई कैंप का आयोजन किया जाता है, जो अम्बर फाउंडेशन की एक अनूठी पहल है। गरीबों और जरूरतमंदों की मदद के लिए 25 हज़ार चश्मों का वितरण, बच्चों की फीस अदा करना और कलेक्टर बिटिया जैसी महत्वपूर्ण योजनाएँ इसी मोहल्ले से चलती हैं।
*कोरोना काल में सज्जाद बाग का ऐतिहासिक योगदान*
जब पूरी दुनिया महामारी से जूझ रही थी और लोग अपनों से दूर हो रहे थे, तब सज्जाद बाग के रहनुमा इंसानियत की सबसे बड़ी मिसाल बनकर सामने आए। यह वह दौर था जब इंसान एक-दूसरे से कट रहे थे, मगर सज्जाद बाग के लोगों ने खिदमत का हाथ बढ़ाया और जरूरतमंदों की मदद के लिए दिन-रात लगे रहे।
प्रदेश की सबसे बड़ी प्रिंटिंग, पब्लिशिंग और पैकेजिंग कंपनी के डायरेक्टर वफा अब्बास, शुजा अब्बास, फिदा अब्बास ने कोरोना काल में अपने संसाधनों का उपयोग कर राहत कार्यों को आगे बढ़ाया।
बंधु एंटरप्राइजेज के शब्बीर अहमद, जिनका कारोबार घर-घर पानी पहुंचाने का है, उन्होंने अपने पूरे नेटवर्क का इस्तेमाल कर जरूरतमंदों को मुफ्त पानी और राशन उपलब्ध कराया।
यहाँ के कई नामी वकील, चार्टर्ड अकाउंटेंट, कंपनी सेक्रेट्री और पूर्व जजों ने इस कठिन समय में लोगों को कानूनी और आर्थिक मदद देने का काम किया।
यहां के कई नामी गिरामी प्रतिष्ठित पत्रकारों ने भी इस दौर में बेहतरीन रिपोर्टिंग के ज़रिए सच को सामने लाने में अपनी भूमिका निभाई।
इस मुसीबत के वक्त में सज्जाद बाग के लोगों ने अपने संसाधनों और ताकत का इस्तेमाल सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए किया, जो हमेशा याद रखा जाएगा।
*रूहानियत और जियारत का सिलसिला*
सज्जाद बाग सिर्फ खिदमत और समाजसेवा का नहीं, बल्कि रूहानियत और इबादत का भी मरकज़ है। यहाँ के लोग हर महीने मक्के, मदीने, नजफ, सामरा, काज़मैन, करबला, मशहद और कुम की जियारत पर जाते हैं और वहां दुनिया में अमन और इंसानियत की दुआएं करते हैं।
शीबू भाई जैसे लोग खास तौर पर इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हैं और हर ज़ायरीन को यह याद दिलाते हैं कि जियारत सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि पूरे इंसानियत के लिए करनी चाहिए।
*अंजुमन सज्जादिया का मातम और शहीदाने कर्बला की यादगार अज़ादारी*
सज्जाद बाग की एक और खास पहचान है अंजुमन सज्जादिया, जिसका मातम और शहीदाने कर्बला का ग़म मनाने का अंदाज़ पूरे लखनऊ में अलग पहचान रखता है।
यहाँ मातम सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि इबादत और सलीका सिखाने का एक ज़रिया है।
जब यहाँ से मातमी जुलूस निकलता है, तो वह आंसुओं के सैलाब और बीबी फातिमा को पुरसा देने का एक अनूठा मंज़र पेश करता है।
यहाँ का मातम, इसकी शायरी, और इसकी अज़ादारी का अंदाज़ दुनिया भर में अपनी पहचान रखता है।
*इल्म, मीडिया और कुरआनी तिलावत का केंद्र*
सज्जाद बाग न सिर्फ खिदमत और अज़ादारी का केंद्र है, बल्कि इल्म और मीडिया का भी अहम गहवारा है।
*दारुल कुरआन सैयदा सुल्ताना तनज़ील अकादमी, सज्जादबाग के जरिए जामा मस्जिद तहसीनगंज में कुरआन की पाक तिलावत का सिलसिला शुरू हुआ है, जो लोगों के दिलों को ईमान और नूर से रोशन कर रहा है।*
यहाँ हिज टीवी के जीशान आजमी और निदा टीवी का मरकज़ भी स्थित है, जहाँ से इस्लामी तालीमात और अज़ादारी का पैग़ाम पूरी दुनिया में पहुँचाया जाता है।
*अल्लाह की बरकत और नेकियों का मरकज़*
सज्जाद बाग सिर्फ एक इलाका नहीं, बल्कि अल्लाह की बरकतों और नेकियों का मरकज़ है। यहाँ हर घर में दुआओं की तासीर, मदद का जज़्बा और इंसानियत की शमा जलती है।
यह मोहल्ला सिर्फ लखनऊ ही नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लिए एक मिसाल है कि कैसे तहज़ीब, खिदमत, अदब, और रूहानियत को एक साथ जिया जा सकता है।
सज्जाद बाग: जहाँ इंसानियत, इबादत और खिदमत एक साथ सांस लेती है