गाज़ा इस वक़्त अपने इतिहास के सबसे भयावह और दर्दनाक मानवीय संकट से गुजर रहा है। संयुक्त राष्ट्र (UN) ने चेतावनी दी है कि अगर अगले 48 घंटों में गाज़ा को ज़रूरी मदद नहीं मिली, तो लगभग 14,000 मासूम बच्चों की मौत हो सकती है।
इज़रायल की घेराबंदी और गाज़ा की हालत
कई महीने पहले इज़रायल ने गाज़ा पट्टी की पूरी घेराबंदी कर दी थी। न खाना मिल पा रहा है, न पीने का पानी, न दवाइयां, न ईंधन। अस्पतालों में बिजली नहीं, और बच्चों के लिए दूध तक मयस्सर नहीं। गाज़ा की ज़मीन अब बच्चों की कब्रगाह बनती जा रही है।
क्या UN सिर्फ चेतावनी देगा?
सवाल यह है कि क्या संयुक्त राष्ट्र सिर्फ चेतावनी देता रहेगा, या फिर ज़मीनी स्तर पर कोई बड़ा और ठोस कदम भी उठाएगा? क्या इतने बड़े पैमाने पर बच्चों की मौत को हम सिर्फ एक रिपोर्ट में दर्ज करके भूल जाएंगे?
भारत के सुप्रीम रिलीजियस अथोरिटी मौलाना डॉ कल्बे जवाद साहब
भारत के सुप्रीम रिलीजियस अथोरिटी मौलाना डॉ कल्बे जवाद साहब ने कहा कि इज़रायल और अमेरिका खुद आतंकवाद के संस्थापक हैं। उन्होंने हिज़बुल्ला और उसके नेता सैयद हसन नसरुल्लाह को आतंकवादी कहे जाने का विरोध किया और कहा कि इन देशों की रिपोर्टों पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए।
यह सिर्फ आंकड़े नहीं, मासूम जिंदगियां हैं
14,000 — यह कोई सामान्य संख्या नहीं, बल्कि 14,000 सपने हैं, 14,000 हंसती-मुस्कुराती मासूम जिंदगियां हैं, जिन्हें अभी दुनिया देखनी थी, जीना था, खेलना था। आज वे भूख, डर और बमों की आवाज़ों के बीच मौत से जूझ रही हैं।
इंसानियत की आख़िरी परीक्षा
गाज़ा का यह संकट सिर्फ एक भू-राजनीतिक संघर्ष नहीं, बल्कि इंसानियत की आखिरी परीक्षा है। अगर अब भी हम नहीं जागे, तो इतिहास हमें कभी माफ़ नहीं करेगा।
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