जैदपुर के गधे पूरी दुनिया में बन रहे है चर्चा का विषय

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जैदपुर का नाम सुनते ही एक अजीबो गरीब तस्वीर उभरती है – एक ऐसा कस्बा जहाँ अब गधों का ही बोलबाला है, और जिनकी आदतें इतनी पक्की हो चुकी हैं कि उनके नक्शे-कदम पर यहाँ के लोग भी चलते नजर आते हैं। यह कस्बा अपनी सामाजिक विडंबनाओं और ढुलमुल मानसिकता का ऐसा उदाहरण है, जहाँ बदलाव की बात तो दूर, लापरवाही का ही राज है।
 यहाँ गधों का अचानक उछलना हो या बेमतलब पिछवाड़ा हिलाकर पैर चलाना,और हाँ, अगर इनमें से किसी गधे को धर्मगुरु बनने का मौका मिल जाए, तो उनकी ‘फितरत’ में भी कोई बदलाव नहीं आता! आइए, जैदपुर के इस गधों के साम्राज्य की सैर करते हैं और देखते हैं कि आखिर यह गधापन क्या-क्या गुल खिला रहा है। और कब आयेगा इस गंभीर महामारी का टीका।

 गधे धर्मगुरु बन जाएँ, तब भी आदत नहीं जाती!

जैदपुर की कहानी कुछ ऐसी है कि यहाँ के गधे चाहे जैसे हों – उछल-कूद करने वाले हों या बोझ लादकर शांत चलने वाले, अपनी आदतें नहीं छोड़ते। अगर उन्हें धर्मगुरु भी बना दिया जाए, तब भी उन्हें करबला के कब्रिस्तान, इमामबाड़े या मस्जिद की हालत पर कोई फर्क नहीं पड़ता। मस्जिद वीरान पड़ी रहे, इमामबाड़ा गंदगी से भरा हो – इनकी बला से। ये तो उसी खामोशी में मगन रहते हैं, जैसे सबकुछ ठीक-ठाक है। जैदपुर में यह मंजर एक आम बात है, लेकिन इसके पीछे की उदासीनता और बेपरवाही का आलम झकझोरने वाला है।

नेक जमींदार और गधों की गंदगी

जैदपुर में कुछ जहीन और शरीफ जमींदार भी हैं, जिनकी सादगी और ईमानदारी की मिसालें दी जाती हैं। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। यहाँ के कुछ गधों ने तालाब की मछलियों की तरह सब कुछ गंदा कर दिया है। एक गंदी मछली की वजह से जैसे सारे तालाब की मछलियाँ बदनाम हो जाती हैं, वैसे ही इन गधों की गंदगी में ईमानदार लोग भी उसी नजर से देखे जाते हैं। जैदपुर के कुछ गधों ने इस कदर माहौल बिगाड़ दिया है कि आम इंसान यहाँ के समाज पर शक करने लगा है।

 बच्चे भी चल रहे है  उसी नक्शे कदम पर

दुनिया आगे बढ़ रही है, लेकिन जैदपुर में गधों का साम्राज्य इस कदर फैल चुका है कि यहाँ के बच्चे भी अब बेवकूफ बने रहते है, मछली के बच्चे को तैरना सिखाने की जरूरत नहीं पड़ती, वैसे ही गधों के बच्चों में गधेपन का हुनर अपने आप आ जाता है। वो अपने बुजुर्गों के नक्शे-कदम पर चलते हुए बड़े हो रहे हैं और अपने आस-पास की बेमतलब चीजों को भी उसी अंदाज में देख रहे हैं।

ईश्वर के नाम लुटती वक्फ संपत्ति और गधों की खामोशी

जैदपुर की सैकड़ों-करोड़ों की वक्फ संपत्ति पर लोगों ने कब्जा जमा लिया है। लेकिन इन गधों को इसकी खबर तक नहीं। अगर है भी तो इन्हें तो जैसे किसी चीज की परवाह ही नहीं है। ये आसपास की बेतरतीब गधे  से आने वाली खुशबू के नशे ही मशगूल रहते हैं। ये बेपरवाह हैं कि करबला का कब्रिस्तान उजड़े या मस्जिद वीरान हो, इनकी लापरवाही का आलम यही है। सड़क किनारे अपने काम में व्यस्त ये गधे, बस अपनी धुन में मगन हैं।

जैदपुर का पानी में क्या है गधापन का असर?

अब बात करते हैं जैदपुर के पानी की। यहाँ एक अजीब-सी मान्यता है कि जो भी शख्स यहाँ का पानी चालीस दिन पी ले, उसमें गधों जैसी लापरवाही रच-बस जाती है। चाहे कितनी भी जागरूकता की बातें कर लें, लेकिन यहाँ का पानी पीकर लोग भी उसी बेपरवाह रवैये में ढल जाते हैं। ये जैदपुर की वो ‘खासियत’ है जो इसे 21वीं सदी में भी पुराने जमाने का एक गधों का केंद्र बना देती है। यहाँ का पानी पीते ही लोग आराम से गधों के इस “महामारी” का हिस्सा बन जाते हैं।

बुजुर्ग लोग कहते है कि जमीनों पर अवैध कब्जा से वहां लगे हैंड पंप का पानी के साथ इबादत नमाज रोजा सब  हराम है तो जाहिर बात है उसकी तासीर बदल जाए क्या खास बात है।

धर्मगुरुओं का दूर होना: एक चेतावनी

जैदपुर के इन हालात से तंग आकर कई धर्मगुरु इस जगह को छोड़ चुके हैं। कई तो बाराबंकी या लखनऊ ही नहीं, बल्कि मुंबई, गुजरात, दिल्ली जैसे दूर-दराज के शहरों में बस गए हैं। अब यह गुरू शायद ही कभी जैदपुर लौटते हैं। कभी किसी विशेष आयोजन में वे बड़ी मुश्किल से आते हैं, लोगों के लिए दुआ करते हैं, और फिर जल्दी से वापस चले जाते हैं।

जैदपुर के लोग इन बड़े धर्मगुरुओं की तकलीफ को नहीं समझते, उनकी दुआओं की कद्र नहीं करते। इस कस्बे में बदलाव लाने का इरादा तो दूर की बात है, इन गधों ने तो बस लापरवाही और पुरानी सोच को ही अपनी आदत बना लिया है।

 क्या कोई टीका इस गधापन से बचा सकता है?

जैदपुर में गधापन की महामारी इतनी बुरी तरह फैल चुकी है कि अब कोई टीका ही इसे रोक सकता है। इस कस्बे को बदलने के लिए एक नए टीके की जरूरत है जो लोगों में जागरूकता और जिम्मेदारी लाए। नई पीढ़ी को अब आगे बढ़ना होगा, ताकि इस गधेपन का चक्र टूट सके और जैदपुर में बदलाव की हवा चल सके। आखिरकार, गधों की इस परंपरा को खत्म करने का वक्त आ गया है ताकि जैदपुर को एक नई दिशा मिल सके।

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