नई दिल्ली। जब बात मुसलमानों को रिझाने की हो, तो सियासत में नीयत से ज्यादा नाटकबाजी चलती है। कभी नेता जी आफ़्तार पार्टी में जाकर नमाज पढ़ते नजर आते हैं, तो कभी टोपी पहनकर रोज़ा इफ्तार का दिखावा करते हैं। अब इसी सिलसिले में एक नया एपिसोड जुड़ गया है – "सौगात-ए-मोदी" गिफ्ट पैक। लेकिन हकीकत यह है कि यह मोदी सरकार का नहीं, बल्कि बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष जमाल सिद्दीकी का सियासी स्टंट है, ताकि वह अपना नंबर बढ़ा सकें।
🥀 मुसलमानों को सौगात या सौदा?
जमाल सिद्दीकी ने अल्पसंख्यकों के बीच अपनी छवि चमकाने और बीजेपी के बड़े नेताओं की नजर में आने के लिए "सौगात-ए-मोदी" नाम का गिफ्ट पैक लॉन्च कर दिया। नाम ऐसा रखा, मानो यह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कोई व्यक्तिगत तोहफा हो! इस पैक में चंद राशन की चीजें रखकर मुसलमानों को खैरात बांटने का ड्रामा किया जा रहा है।
लेकिन हकीकत इससे कहीं ज्यादा कड़वी है।
अब इस सपने को साकार करने के लिए अल्पसंख्यक मोर्चे ने धनवान अल्पसंख्यकों को ब्लैकमेल करके जबरन किट का इंतजाम कराने का खेल शुरू कर दिया है।
रसूखदार और अमीर मुसलमानों पर किट के लिए दबाव डाला जा रहा है, ताकि इस सियासी ड्रामे को बड़ी सफलता दिखाया जा सके।
बड़े कारोबारियों और समाजसेवियों को इस "मोहब्बत भरे दबाव" में लाकर चंदे की शक्ल में मदद मांगी जा रही है, ताकि सिद्दीकी साहब की सियासी दुकानदारी चमक सके।
🤔 भाजपा भी हुई हतप्रभ!
इस सियासी नाटकबाजी से खुद मोदी सरकार के बड़े नेता भी हैरान हैं। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा कि जमाल सिद्दीकी ने बिना रणनीति के ही यह 'सियासी तमाशा' क्यों खड़ा कर दिया।
सरकार के कई नेताओं का मानना है कि यह कदम मुसलमानों को रिझाने के बजाय बीजेपी को बैकफुट पर डाल सकता है।
मुसलमानों को खैरात देकर नहीं, बल्कि उनके अधिकार देकर ही बीजेपी भरोसा जीत सकती थी, लेकिन सिद्दीकी ने इसे "सियासी भीख" का रूप दे दिया।
🔥 "सौगात" या सियासी सौदा?
जमाल सिद्दीकी की यह चाल मुसलमानों को महज एक वोट बैंक समझने की मानसिकता को दर्शाती है।
अगर बीजेपी को वाकई मुसलमानों की भलाई की फिक्र होती, तो वह "हजरत अली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी" की घोषणा करती।
या फिर मुसलमानों की बंद छात्रवृत्तियां बहाल करती।
लेकिन नहीं, यहां सिर्फ सस्ती शोहरत बटोरने और मुसलमानों को मोहताज दिखाने का नाटक किया जा रहा है।
🛑 मुसलमानों को बेवकूफ समझने की गलती न करें!
आज का मुसलमान खैरात का मोहताज नहीं, बल्कि इंसाफ का तलबगार है।
उसे "सौगात-ए-मोदी" जैसे तमाशों की नहीं, बल्कि वक्फ की सुरक्षा, शिक्षा में बराबरी और नौकरी के मौके चाहिए।
मुसलमानों को अब सियासी इफ्तार और खैरात के ड्रामे से नहीं, बल्कि उनके हक-ओ-हकूक की गारंटी चाहिए।
जमाल सिद्दीकी साहब!
मोदी के नाम पर "सौगात" बेचकर आप अपना नंबर तो बढ़ा सकते हैं, लेकिन मुसलमानों का भरोसा खो बैठेंगे।
धनवान मुसलमानों को ब्लैकमेल कर जबरन किट बंटवाने का यह खेल आपकी सियासी दुकानदारी तो चमका सकता है, लेकिन मुसलमान अब टोपी पहनकर नमाज पढ़ने वाले या खैरात बांटने वाले सियासी तमाशों में नहीं फंसता। उसे अब "सौगात" नहीं, बराबरी चाहिए!