"दरिया के किनारे एक प्यासे बीमार इमाम का मातम: बाराबंकी के बेलांव में होगी दरियाई अलम और शब्बेदारी की गमगीन रात"

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Srm Voice /हसनैन मुस्तफा

बाराबंकी, सैयदवाड़ा (हुसैनिया मीर रहमत अली):
दिनांक 21 जुलाई 2025 को 25 मोहर्रम 1447 हिजरी के मौके पर, हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अ.स. की शहादत की याद में एक ग़मगीन और रूह कांप देने वाला मंजर पेश किया जाएगा। दरियाई अलम और शब्बेदारी का यह दर्दभरा आयोजन हुसैनिया मीर रहमत अली, पश्चिम बेलांव, सैयदवाड़ा बाराबंकी में होगा — जहां अज़ादार खून के आंसू रोते हैं और हर साल दरिया के किनारे उस बीमार इमाम का मातम करते हैं, जिसने प्यास और कैद में भी सब्र और सज्दा नहीं छोड़ा।

यह मातमी कार्यक्रम इमाम अली बिन हुसैन ज़ैनुल आबेदीन अ.स. की उस बेबसी को ज़िंदा करता है जब कर्बला के बाद वो प्यासे, बीमार, और जंजीरों में जकड़े हुए भी नमाज़ में मशगूल रहे। दरियाई अलम की सूरत में कर्बला के उस ताजदार का ग़म याद किया जाएगा, जिसे यज़ीदी दरबार में बीमार होने के बावजूद कैद में घसीटा गया।

कार्यक्रम की झलकियाँ:

  • दरियाई अलम का जुलूस: इमाम की याद में उठेगा वह अलम जो दरिया के किनारे अज़ादारी की रूह को जगाएगा।
  • मुख्य मजलिस: देश के मशहूर आलिम-ए-दीन हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुशीर अब्बास ख़ान साहब क़िबला रूहानी अंदाज़ में इमाम की शहादत पर बयान करेंगे।
  • नौहा-ख़्वानी और सीनाज़नी: रात भर जारी रहेगा ग़म और मातम का सिलसिला।
  • तबर्रुक और ज़ियारत: परचम, शबीह-ए-ताज़िया, और अलम की ज़ियारत करवाई जाएगी।

मुख्य वक्ता मौलाना ज़हीर मेहदी साहब मजलिस से पहले शहादत का तसव्वुर पेश करेंगे। फिर अंजुमन हाफ़िज़ अज़ा परचम बेलांव की जानिब से नौहा-ख़्वानी और मातमी दस्तों की पेशकश होगी।

हर साल की तरह इस बार भी अज़ादारी का यह मंजर इंसानियत के सबसे बड़े सबक को बयान करेगा — सब्र, बंदगी और ज़ुल्म के खिलाफ़ अज़्म।

"कहते हैं दरिया भी उस रात साकित हो जाता है,
जब अज़ादार दरिया किनारे रोता है उस बीमार इमाम के लिए,
जो प्यासा था, कैद में था, मगर सज्दे से हटता नहीं था..."

यह वह लम्हा होता है जब ज़मीन और आसमान दोनों ग़म में सर झुका लेते हैं। बच्चे, बूढ़े, और जवान सब की आंखों में आँसू और दिलों में इमाम की याद का दर्द होता है।


आयोजक:
अंजुमन हाफ़िज़ अज़ा परचम बेलांव
संपर्क: मोहम्मद – 9838564184, औन – 9838940059
सहयोग: Arsh Lko – 9453905110

नोट:
मजलिस के बाद सामूहिक ज़ियारत, तबर्रुक की तकसीम और जियारते तबर्रुकात-ए-कर्बला पेश की जाएगी। सभी अज़ादारों से इस पुरग़म आयोजन में शिरकत की दरख्वास्त है।


"इमामे ज़ैनुल आबेदीन अ.स. का सज्दा आज भी ज़ालिम ताक़तों को नींद से जगाता है...
और बेलांव की शब्बेदारी उसी सज्दे की सदा है!"


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