SRM Voice Desk
बाराबंकी:अमेरिका,इज़राइल ,सऊदी अरब ,मूर्तद गैंग की नीतियां किस तरह शिया समुदाय में पेवस्त हो रही है देखना है तो सैकड़ों उलेमाओं को जन्म देने वाली लाखों शियाओ को आश्रय देने वाले बाराबंकी में आइए, जहां शिया विरासत का दिल – करबला की जन्नतुल बकी – आज फिर ताले में कैद रहा। ये सिर्फ एक दरवाज़ा नहीं, बल्कि अज़ादारी और मोहब्बत का रास्ता है जो सीधा दिलों से होकर इमामों के दर तक जाता है। लेकिन अफ़सोस, 25 मोहर्रम को जब पूरी दुनिया इमाम जैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत पर मातम करती है, तब इस पवित्र स्थल पर ताले की जंजीरें, गंदगी का अंबार, बेहिसी की चादर और सियासत की साज़िशें इसकी रूह को चीरती हैं।
💔 ये ताला किसका है?
क्या यह ताला क़ौम की नाकामी का प्रतीक है, या फिर क़ौमी जिम्मेदारी से भागते समाज की चुप्पी का इल्ज़ाम?
क्या यह ताला शिया वक्फ़ बोर्ड की मूर्तद के कार्यकाल की गठित कमेटी की अनदेखी है, या सियासी दुश्मनी के नाम पर बीजेपी सरकार को बदनाम करने की साजिश?
🧕🏽 क्या यह सिर्फ एक इत्तेफाक है?
हर साल, जब भी कोई बड़ा अज़ादारी का दिन आता है – यही जन्नतुल बकी बंद क्यों पाई जाती है?
कहीं यह सोच-समझ कर तो नहीं किया जा रहा कि क़ौमी ग़ुस्से को सियासी मोड़ दे दिया जाए?
कब्रों की तौहीन, शहादत के दिन दरवाज़े पर ताला, चिराग़ों की जगह सन्नाटा, और मातम की जगह चुप्पी – ये सब सिर्फ इत्तेफाक नहीं हो सकते।
ये भी साजिश है।
8 साल हो गए जब मस्जिद की नींव तोड़कर जिद में इस जन्नतुल बकी की तामीर की गई,लेकिन उसके बाद इसको ताले में बंद कर दिया गया,न इबादत करने दी गई न मातम
🙏🏽 मौलाना और अंजुमनों की खामोशी: ये चुप्पी क्यों?
कहां हैं वो मौलाना साहबान जो मिम्बर से जुल्म के खिलाफ बोलते हैं?
कहां हैं अंजुमनें जो ‘या हुसैन’ या सैयदे सज्जाद के नव्हों से इमामबाड़े आज़ाखानो की दीवारों को रुला देते हैं?
हर साल जन्नतुल बकी के लिए ज्ञापन देने वाले अपने शहर की शबीह जन्नतुल बकी रोज़े के बंद दरवाज़े और बेअदब माहौल पर उनका ज़मीर नहीं कांपता?
🛑 सवाल सिर्फ सरकार से नहीं, खुद से भी है!
क्या हमारी खामोशी इस ताले की सबसे बड़ी ताक़त नहीं बन गई है?
क्या सिर्फ सरकार और वक्फ बोर्ड को कोसना ही काफी है, जब हम खुद वहां नहीं जाते,
आवाज़ नहीं उठाते,
शिकायती पत्र नहीं लिखते,
वक्फ बोर्ड की बनाई कमेटी जिसका कार्यकाल खत्म हो चुका उससे जवाब नहीं मांगते?
📢 अब खामोश रहना गुनाह होगा!
बाराबंकी की तहज़ीब, उसकी शिया पहचान और अज़ादारी की परंपरा को बचाना है तो अब हर दरवाज़े पर दस्तक देनी होगी —
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को
जिलाधिकारी बाराबंकी को
चेयरमैन/मुख्य कार्यपालक अधिकारी, यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड को
और ये बताना होगा कि यह मामला सिर्फ एक इमारत का नहीं, हमारी रूह की आवाज़ है।
📩 अगर अब भी खामोश रहे तो अगली नस्लें हमें माफ़ नहीं करेंगी।
ये सिर्फ एक ताला नहीं है,
ये हमारी बेइत्तहाई उदासीनता,
हमारी लापरवाही,
और हमारी कौमी बेकद्री की पहचान बनता जा रहा है।
उठिए, बोलिए, लिखिए, लड़िए – मगर खामोश मत रहिए।
वरना ये ताला हर मोहर्रम, हर शहादत, हर अज़ादारी पर हमारी शर्मिंदगी बनकर लटकता रहेगा।
❗ यही वक्त है — बंद जन्नतुल बकी के दरवाज़े खोलने का... अपने ज़मीर को भी!
अगर आप का जमीर जिंदा है,और जन्नतुल बकी ,जनाबे फातिमा जहरा और इमामों को मानते है और सचमुच शिया है तो इस शिकायत पत्र को भेजिए।
सेवा में,
मा. मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश शासन, लखनऊ
मा अल्पसंख्यक मंत्री उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ
श्रीमान जिलाधिकारी, बाराबंकी
श्रीमान चेयरमैन/मुख्य कार्यपालक अधिकारी, यूपी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड, 817 इंदिरा भवन, लखनऊ
विषय: बाराबंकी की करबला स्थित बंद पड़ी “जन्नतुल बकी” में इमाम जैनुल आबेदीन अ. की शहादत पर भी ताले, तौहीन, और गंदगी का आलम — कौम की रुह तक काँप गई,कमेटी की गुंडागर्दी,जिद बदतमीजी पर उठाए सख्त कदम
महोदय,
अत्यंत पीड़ा और भारी दिल से यह पत्र आपके संज्ञान में लाया जा रहा है कि बाराबंकी की करबला में स्थित “जन्नतुल बकी” का आलम आज भी अफसोसनाक है। इमाम अली बिन हुसैन जैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की शहादत (25 मोहर्रम) जैसे आलमी ग़म और अज़ा के दिन भी, इस मुबारक मक़ाम पर ताले पड़े रहेंगे, गंदगी ज्यों की त्यों रहेगी, और कौम की खामोशी को इसकी तौहीन समझा जाएगा?
क्या यही है हमारे अज़ादारी की इज़्ज़त? क्या हमारी मजरूह शान और मफ़लूज़ ग़ैरत यूंही ताले के पीछे दम तोड़ती रहेगी?
इस "जन्नतुल बकी" को बंद कर देने की गुंडा गर्दी , ज़िद, हठधर्मी, और राजनीतिक खींचतान — चाहे वो मोमिनीन की लापरवाही हो या वक्फ बोर्ड की मूर्तद की बनाई कमेटी जिसका कार्यकाल खत्म हो गया है कि अनदेखी — सीधा-सीधा मज़हबी एहसासात की तौहीन है।
इसमें किसी एक पार्टी या व्यक्ति का दोष नहीं है — गुनाहगार हम सब हैं:
वो अंजुमनें जो खामोश हैं,
वो मौलाना जो मिम्बर से आवाज़ बुलंद नहीं कर रहे,
और हम आम मोमिन, जो खामोशी से इस ताले को नसीब मान बैठे हैं।
क्या ग़ुरबत में दीनी मक़ाम बंद हो जाते हैं? क्या मज़ार-ए-पाकों की तौहीन भी अब सियासत की मोहताज रह गई है?
हम मांग करते हैं:
1. “जन्नतुल बकी” को खोला जाए।
2. साफ-सफाई और लाइटिंग की समुचित व्यवस्था की जाए।
3. वक्फ बोर्ड जिम्मेदारी से इस पवित्र स्थल को नियमित रूप से खोलने की नीति बनाए, दिशा निर्देश दे।
4. इस स्थल की तौहीन में शामिल या लापरवाह किसी भी व्यक्ति या कमेटी की जाँच हो। मुकदमा दर्ज हो
अगर हमारी कौम के लिए जन्नतुल बकी के दरवाज़े नहीं खुलते, तो फिर किस उम्मीद के सहारे हम अपने बच्चों को अज़ादारी का मतलब समझाएँ?
आपसे करबद्ध निवेदन है कि इस पत्र को केवल एक शिकायत न समझा जाए, बल्कि इसे एक रूठे अज़ादार की पुकार, एक तड़पते दिल की आवाज़ और मज़लूम इमाम की याद में जज़्बाती आंसू समझा जाए।
इंतज़ार है उस घड़ी का जब जन्नतुल बकी खुलेगी... और इमाम के चाहने वालों की सिसकियाँ, सुकून में तब्दील होंगी।
सादर,
[आपका नाम]
[पता / मोहल्ला / शहर]
[मोबाइल नंबर]
[दिनांक]
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