🕯️शिया आलिमे दीन, मुअज्ज़ज़ मुफ़स्सिर, मुज्तहिद और इंसानियत के रहनुमा Grand Ayatollah Sayyid Abu al-Qasim al-Musawi al-Khoei (r.a.) की बरसी के मौक़े पर, पूरी दुनिया उन्हें याद कर रही है। उनकी ज़िंदगी तौहीद, तक़्वा, इल्म और इंसाफ़ की दर्सगाह रही है।
जहाँ दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में उन्हें श्रद्धा और इख़लास से याद किया जाता है, वहीं भारत की राम नगरी अयोध्या (उस समय फैज़ाबाद) में भी 1992 में जब उनका इंतेक़ाल हुआ, एक ग़मगीन और तारीखी मंजर पेश आया, जिसने मज़हबी हमआहंगी और शिया समाज की ईमानी जुंबिश को दुनिया के सामने पेश किया।
📜 ज़िन्दगी का इख़तिसार
- जन्म: 15 रजब 1317 हिजरी / 1899 ई., ख्वे, ईरान
- विसाल: 8 अगस्त 1992, नजफ़, इराक
- दफ़न: हरम-ए-इमाम अली (अ), नजफ़
- नसब: इमाम मूसा काज़िम (अ) की औलाद से
आयतुल्लाह अल-खुई (र.अ) बीसवीं सदी के सबसे अहम मरजा़-ए-तक़लीद माने जाते हैं। उन्होंने शिया फ़िक़्ह, उलूम-ए-क़ुरआन, उसूल और रेजाल पर गहराई से काम किया और हज़ारों तालिब-ए-इल्मों को तैयार किया।
📚 इल्म, फिक्ह और तहरीरी खिदमात
उनकी अज़ीम तालीमी और तहरीरी खिदमात में शामिल हैं:
- Tafsir al-Bayan – क़ुरआन की तफ़्सीर
- Misbah al-Usul – उसूल-ए-फिक़्ह पर अज़ीम किताब
- Ta'liqat fi al-Fiqh – फिक़्ही इश्तेहाद की मिसाली क़वायद
- Al-Khoei Foundation – लंदन, अमेरिका, अफ्रीका, एशिया में तालीमी व इमदादी इदारे
💔 ज़ुल्म के साये में सब्र
1991 की इराकी इंतेफ़ाज़ा (विद्रोह) में जब शियाओं ने तानाशाही के खिलाफ आवाज़ उठाई, तो उन्होंने मजलूमों का साथ दिया। इसके एवज़ में सद्दाम हुसैन ने उन्हें घर में नज़रबंद कर दिया और उनके बेटे सैय्यद मोहसिन अल-खुई (र.अ.) को शहीद करवा दिया।
यह वह मुक़ाम था जब इल्म, इख़लाक और इसार की बुलंदी पर उनका किरदार सब्र की इन्तहा बन गया।
🌍 फैजाबाद (अयोध्या) में एक यादगार मंजर – 8 अगस्त 1992
1992 में जब Grand Ayatollah al-Khoei (r.a.) का इंतेकाल हुआ, भारत के धार्मिक रूप से संवेदनशील और ऐतिहासिक नगर फैजाबाद (अब अयोध्या) में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद चरम पर था। इस तनावपूर्ण माहौल में एक अलग ही ईमानी और अकीदतमंद इज़हार पेश आया।
मैं खुद उस समय एक बिजनेस टूर पर फैजाबाद में मौजूद था। इस दौरान फैजाबाद के मोमिनीन और उस दौर के शिया रहनुमा:
- मौलाना तकीउल हैदरी साहब (प्रिंसिपल, वसीका अरेबिक कॉलेज)
- मौलाना नदीम रज़ा जैदी साहब
की क़ियादत में एक खामोश लेकिन पुरअसर अलम जुलूस निकाला गया।
📍 स्थान:
राठ हवेली इमामबाड़ा से शुरू होकर, चौक, कचहरी रोड, होते हुए दरगाह हज़रत अब्बास वज़ीरगंज तक यह जुलूस गया।
यह कोई शोरगुल या प्रदर्शन नहीं था, बल्कि:
“ग़म के साए में, अकीदत और इख़लास की जुबान में, एक पुरसा इमामे ज़माना (अ.ज.) की बारगाह में पेश किया गया था।”
हर अंजुमन के पास सिर्फ़ अलम था – , कोई शोर नहीं – सिर्फ ख़ामोशी और अश्क थे।
इस मंजर ने मेरे दिलो-दिमाग़ पर गहरा असर डाला। आज भी उस ग़मगीन जुंबिश की तस्वीर मेरे जेहन में ताज़ा है, जिसमें हर मोमिन एक दिल से रो रहा था।
🕌 एक यादगार विरासत
आयतुल्लाह अल-खुई (र.अ) का पैग़ाम आज भी उतना ही अहम है जितना उस दौर में था:
🕊️ "इल्म से अंधेरों को मिटाओ, इंसाफ से ज़ुल्म को रोको और इख़लास से उम्मत को जोड़ो।"
उनकी तहरीरें, तालीमी इदारे, और फतवे आज भी दुनिया भर के मोमिनीन को रहनुमाई दे रहे हैं।
📿 बरसी पर अकीदत का इज़हार
उनकी बरसी (8 अगस्त) के मौके पर हम सबको चाहिए कि:
- सूरह फ़ातेहा पढ़ें
- उनके बताये रास्ते पर चलें
- दीनी तालीम व इंसाफ को अपना मिशन बनाएं
- और इमामे ज़माना (अ.ज.) से उनके दर्जात की बुलंदी के लिए दुआ करें।
🤲 इल्तिमास-ए-दुआ
اللهم اغفر له، وارفع درجته في المهديين، واخلفه في عقبه في الغابرين، واجعل الجنة مثواه، وارزقنا اتباع سبيله يا أرحم الراحمين.