अयोध्या की पावन धरती, जिसे पूरी दुनिया मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की जन्मभूमि के नाम से जानती है, हमेशा से इंसानियत, मोहब्बत और भाईचारे का पैग़ाम देती आई है। यही सरज़मीं, जो इतिहास और अध्यात्म की गवाही देती है, हाल ही में एक ऐसी इंसानी दास्तान की गवाह बनी जिसने सबको गहराई से छू लिया।
रुदौली में हुई यह मुलाक़ात दो ऐसे डॉक्टरों की थी, जिन्हें देखकर इंसानियत को यक़ीन होता है कि अभी भी इस ज़मीन पर फ़रिश्ते चलते हैं। एक तरफ़ थे नेकदिल और इंसानियत के लिए जज़्बा रखने वाले डॉ. निहाल रज़ा साहब, और दूसरी तरफ़ थे इमाम खुमैनी फाउंडेशन से जुड़े हुए खिदमतगार इंसान डॉ. रेहान काज़मी। दोनों की यह मुलाक़ात किसी आम बातचीत का हिस्सा नहीं थी, बल्कि यह ग़रीबों की ज़िंदगी में नई रौशनी लाने और उनके इलाज के लिए एक ठोस मुहिम का ऐलान थी।
ग़रीब की आँखों में रौशनी – असली इबादत
आज का ज़माना वह है, जहाँ लोग दौलत और शोहरत के पीछे भागते हैं। लेकिन इन दो डॉक्टरों की सोच बिल्कुल जुदा है। दोनों का मानना है कि सबसे बड़ी इबादत वही है, जिसमें किसी मजबूर इंसान के दर्द को कम किया जाए, किसी ग़रीब की आँखों की रोशनी वापस लौटाई जाए और उसके चेहरे पर मुस्कान लाई जाए।
डॉ. निहाल रज़ा साहब पहले से ही गाँव-गाँव जाकर आँखों की जाँच, मुफ़्त दवाइयों और ऑपरेशन की मुहिम चला रहे हैं। उनकी सेवाओं से न जाने कितनी माँओं की आँखें फिर से रोशन हुईं, कितने बुज़ुर्ग फिर से अपने बच्चों के चेहरे देख पाए और कितने मज़दूर फिर से अपनी मेहनत का रोज़गार जारी रख सके।
डॉ. रेहान काज़मी, जो इमाम खुमैनी फाउंडेशन से जुड़े हैं, इस बात पर पूरा यक़ीन रखते हैं कि इंसानियत की सबसे बड़ी सेवा है – "ग़रीब की आँखों में उजाला।" यही वजह रही कि रुदौली की इस मुलाक़ात में उन्होंने मिलकर इस मुहिम को और ज़्यादा संगठित व व्यापक बनाने पर तफ़सीली गुफ़्तगू की।
रुदौली: उम्मीद की धरती
रुदौली, जो अयोध्या की तहज़ीब और गंगा-जमुनी संस्कृति का अहम हिस्सा है, हमेशा से लोगों को मोहब्बत और इंसानियत से जोड़ने का काम करता रहा है। जब यह ख़बर गाँव-गाँव पहुँची कि डॉक्टर साहब गरीबों के लिए आँखों की रौशनी और इलाज का इंतज़ाम कर रहे हैं, तो लोगों की आँखों में चमक और दिलों में उम्मीद की लहर दौड़ गई।
बुज़ुर्गों की आँखों में यह उम्मीद जग गई कि अब उनकी दुनिया फिर से रोशन होगी। बच्चों ने सोचना शुरू कर दिया कि अब उनकी माँ-बाप उन्हें देख पाएँगे। मज़दूरों और ग़रीबों ने राहत की साँस ली कि अब उनकी आँखों का इलाज बिना बोझ उठाए हो सकेगा।
मुलाक़ात का मक़सद: सिर्फ़ इलाज नहीं, बल्कि इनक़लाब
इस मुलाक़ात में सिर्फ़ इलाज की बात नहीं हुई, बल्कि समाज में एक बदलाव लाने की बात हुई। डॉ. निहाल रज़ा और डॉ. रेहान काज़मी दोनों इस बात पर सहमत नज़र आए कि आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है – सेहत और इलाज का हक़ ग़रीब तक पहुँचना।
उन्होंने तय किया कि आने वाले वक़्त में गाँव-गाँव जाकर मेडिकल कैम्प लगाए जाएँगे, मुफ़्त ऑपरेशन कराए जाएँगे और हर इंसान को यह एहसास दिलाया जाएगा कि वह अकेला नहीं है। यह सिर्फ़ इलाज की योजना नहीं, बल्कि समाज में मोहब्बत और बराबरी का इनक़लाब लाने की कोशिश है।
इंसानियत की आवाज़
डॉ. निहाल रज़ा साहब ने इस मुलाक़ात के दौरान कहा –
"अगर किसी ग़रीब की आँखों से अंधेरा हट जाए और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आए, तो वही मेरी सबसे बड़ी कमाई है।"
वहीं, डॉ. रेहान काज़मी ने भी अपनी बात रखते हुए कहा –
"ग़रीब की आँखों में रोशनी ही असली इनक़लाब है। यही काम हमें समाज को इंसानियत से जोड़ने और मोहब्बत फैलाने की ताक़त देगा।"
दोनों की यह बातें न सिर्फ़ दिल को छू गईं, बल्कि वहाँ मौजूद हर शख़्स के लिए प्रेरणा बन गईं।
अयोध्या की मिट्टी का असर
यह कोई मामूली बात नहीं कि ऐसी इंसानियत-परस्त मुलाक़ात अयोध्या की सरज़मीं पर हुई। यह वही जगह है जहाँ से रामराज्य की कल्पना उठी थी – एक ऐसा राज्य जहाँ किसी के साथ अन्याय न हो, जहाँ हर कोई बराबर हो और जहाँ ग़रीब और अमीर में फ़र्क़ न किया जाए।
रुदौली की इस मुलाक़ात ने जैसे उस रामराज्य की झलक पेश कर दी, जहाँ ग़रीब की आँखों में रोशनी लौटाना, इंसानियत की सबसे बड़ी सेवा मानी गई।
आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल
आज जब समाज में इंसानियत की क़द्र कम होती जा रही है, यह मुलाक़ात एक मिसाल बनकर सामने आई है। यह बताती है कि अगर नेक नियत और सच्चा जज़्बा हो, तो दो लोग मिलकर भी समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
डॉ. निहाल रज़ा और डॉ. रेहान काज़मी की यह पहल आने वाली पीढ़ियों को यह पैग़ाम देती है कि इंसानियत से बड़ी कोई इबादत नहीं और मोहब्बत से बड़ा कोई इनाम नहीं।
पुरषोत्तम श्रीराम की अयोध्या की सरज़मीं पर हुई यह मुलाक़ात हमेशा याद रखी जाएगी। यह मुलाक़ात सिर्फ़ दो डॉक्टरों की नहीं थी, बल्कि यह उम्मीद, इंसानियत और मोहब्बत की मुलाक़ात थी।
गरीबों की आँखों में रौशनी लौटाने की यह मुहिम आने वाले दिनों में न जाने कितने घरों में उजाला करेगी, कितने चेहरों पर मुस्कान लाएगी और कितने दिलों को दुआ करने पर मजबूर करेगी।
✍️ रुदौली की यह दास्तान आने वाली नस्लों के लिए यह पैग़ाम छोड़कर जाएगी – कि इंसानियत की खिदमत ही सबसे बड़ी इबादत है और गरीब की आँखों में रोशनी लौटाना सबसे बड़ा इनक़लाब।