जनाबे फातिमा ज़हरा स.अ. की शबे विलादत और शादाब जैसे नौजवानों का जज़्बा,जिंदाबाद मोमिनीन बाराबंकी

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Srm Voice /हसनैन मुस्तफा

आज का दिन इस्लामिक कैलेंडर के लिहाज से बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि आज थी जनाबे फातिमा सलावतुल्लाह अलैहा की शबे विलादत बा सआदत। यह वह खास दिन है जब हम सब अहले बैत के प्यारे रिश्ते और उनके योगदान को याद करते हैं। मुबारकबाद का सिलसिला जारी था, और पूरे क़ौम में इस दिन के लिए अकीदत और श्रद्धा का इज़हार हो रहा था।

खुदा का शुक्र है कि इस दिन को लेकर क़ौम के नौजवानों में उठने वाला अकीदत का जज़्बा हर गुजरते दिन के साथ मजबूत होता जा रहा है। खासकर बेगमगंज के एक यतीम नौजवान, शादाब का उदाहरण हमारे सामने आया, जिसने अपनी मेहनत और समर्पण से इस दिन को और भी खास बना दिया।

शादाब की क़ुरबानी और समर्पण

कुछ दिन पहले, शादाब ने लाइटिंग और साउंड सिस्टम के काम की शुरुआत की थी। ऐसे समय में जब बड़े-बड़े लोग और उच्च हैसियत वाले लोग नदारद रहे, शादाब जैसे नौजवान ने अपने जज़्बे और अकीदत से साबित किया कि सच्ची श्रद्धा केवल संपत्ति या स्थिति पर निर्भर नहीं होती, बल्कि यह उस व्यक्ति के दिल और नीयत पर आधारित होती है।

वह पूरी तरह से तैयार था और उसने दिन के उजाले में आकर पूरी जन्नतुल बकी में लाइटिंग का इंतज़ाम किया। उसकी यह मेहनत और समर्पण केवल एक व्यक्ति की कोशिश नहीं, बल्कि एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे किसी भी हालत में अपनी श्रद्धा और अकीदत को निभाया जा सकता है।

वहीं करबला की कमेटी और जिद का शिकार जगह

वहीं दूसरी ओर, करबला की कमेटी और फातिमा सोसायटी इस दिन की अहमियत को न समझ सके। जन्नतुल बकी का ताला बंद रहा और अंदर गंदगी साफ़ नहीं हो सकी। यह एक कड़वा सच है कि जब इस पवित्र स्थल की सफाई और सजावट की बात आई, तो वह निरंतर नजरअंदाज किया गया। फातिमा सोसायटी ने भी इस दर पर फूलों की सजावट तक नहीं की, जबकि यह उनका कर्तव्य था। ऐसी लापरवाही और गफलत ने श्रद्धालुओं को निराश किया और उनके दिलों में आक्रोश पैदा किया।

जज़्बा, समर्पण और प्रेरणा का प्रतीक

यह घटना हमें यह सिखाती है कि वास्तविक समर्पण किसी भी स्थिति और संसाधन से परे होता है। शादाब जैसे नौजवानों का जज़्बा और परिश्रम हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। जब लोग अपनी निजी परेशानियों और कठिनाइयों को नजरअंदाज करते हुए अपने समुदाय और अकीदत के प्रति अपने कर्तव्यों को निभाते हैं, तो उनका समर्पण बेमिसाल होता है।

परवरदिगार से दुआ

इस मौके पर हम सब अपनी दुआओं में शादाब जैसे नौजवानों और उन सभी मोमिनीन को याद करते हैं, जो अपनी पूरी मेहनत और ईमानदारी से अहले बैत के मार्गदर्शन में चलने का प्रयास करते हैं। परवरदिगार, इन मोमिनीन को हर बला और आफत से महफूज़ रखना, जो तेरी खुशनुदी और अहले बैत के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।जनाबे फातिमा ज़हरा स.अ. की शबे विलादत और शादाब जैसे नौजवानों का जज़्बा

आज का दिन इस्लामिक कैलेंडर के लिहाज से बहुत अहमियत रखता है, क्योंकि आज थी जनाबे फातिमा सलावतुल्लाह अलैहा की शबे विलादत बा सआदत। यह वह खास दिन है जब हम सब अहले बैत के प्यारे रिश्ते और उनके योगदान को याद करते हैं। मुबारकबाद का सिलसिला जारी था, और पूरे क़ौम में इस दिन के लिए अकीदत और श्रद्धा का इज़हार हो रहा था।

खुदा का शुक्र है कि इस दिन को लेकर क़ौम के नौजवानों में उठने वाला अकीदत का जज़्बा हर गुजरते दिन के साथ मजबूत होता जा रहा है। खासकर बेगमगंज के एक यतीम नौजवान, शादाब का उदाहरण हमारे सामने आया, जिसने अपनी मेहनत और समर्पण से इस दिन को और भी खास बना दिया।


शादाब और मोमिनीन की तारीफ

जिंदाबाद शादाब, जिंदाबाद मोमिनीन! यह वे लोग हैं जो हमेशा अपने विश्वास और श्रद्धा को मजबूत रखते हुए, कठिनाईयों और अभावों के बावजूद अपने क़ौम की सेवा करते हैं। उनकी मेहनत, समर्पण और नीयत को सलाम है।

इस दिन और इस तरह के नौजवानों के जज़्बे के साथ, हमें यह याद रखना चाहिए कि सच्ची श्रद्धा और अकीदत किसी भी हालत में निभाई जा सकती है। यही वह जज़्बा है जो हमें अपने धर्म और विश्वासों को मजबूती से निभाने की प्रेरणा देता है।

एकता और अमल का पैग़ाम

आज, जहां शादाब जैसे नौजवान अपनी अकीदत और समर्पण से जन्नतुल बकी को रोशन कर रहे हैं, वहीं हमें यह समझने की जरूरत है कि इस पवित्र स्थल की देखभाल और सम्मान हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें अपनी जिद और लापरवाही को छोड़कर इस स्थान की सेवा करनी होगी, ताकि अहले बैत के प्रति हमारी श्रद्धा सच्ची और निस्वार्थ बनी रहे।

आइए, हम सब मिलकर इस ताले को सिर्फ दरवाजे से नहीं, बल्कि दिलों से भी हटाएं और इस मुकद्दस जगह को इसकी खोई हुई अजमत लौटाएं।



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