सैयद रिजवान मुस्तफा - 9452000001srm@,gmail.com
अपनी ज़िंदगी को किसी के लिए पूरी तरह उजागर न करें,
क्योंकि ईर्ष्या अक्सर वहीं से जन्म लेती है, जहां लोग आपके घर आकर आपके हालात और संपत्ति को जान लेते हैं।
कोई भी आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक उसे आपके घर की जानकारी न हो।
आपके प्लान को कोई विफल नहीं कर सकता, जब तक आप खुद अपना राज़ न खोलें।
आपका राज़ आपका क़ैदी है, लेकिन जैसे ही आप इसे किसी को बताते हैं, आप खुद उसके क़ैदी बन जाते हैं।
कई बार ईर्ष्या करने वाले लोग सलाह के पर्दे में आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं।
कोई आपके परिवार के खिलाफ साज़िश नहीं कर सकता, जब तक वह आपके घर में बार-बार आना-जाना न करे।
कोई आपकी कमजोरियों को तब तक नहीं जान सकता, जब तक वह आपके बेहद करीब न रहा हो।
हर रिश्ते के लिए एक सीमा तय करें। यह अपेक्षा न करें कि कोई और आपके राज़ को संभालेगा, जबकि आप खुद उसे छुपा नहीं सके।
इसका यह मतलब नहीं कि आप लोगों से रिश्ता तोड़ लें। नहीं, बिल्कुल नहीं। बल्कि यह है कि अपनी सीमाओं को तय करें और उन सीमाओं को पार न होने दें। अपनी ज़िंदगी को किसी के लिए पूरी तरह उजागर न करें, क्योंकि लोग कब बदल जाएं, यह कोई नहीं जानता।
जो लोग कभी आपके दिल और सुकून का सबसे बड़ा कारण थे, वही लोग कभी आपके लिए भय का कारण बन सकते हैं, क्योंकि आपने अपनी कमजोरियां, राज़, और खुद को उनके सामने उजागर किया था।
अपने राज़ को अपना क़ैदी बनाएं, और अपने घर को सुरक्षित रखें।
किसी को भी अपने परिवार के साथ अत्यधिक घनिष्ठ न होने दें, चाहे वह कितना भी करीबी क्यों न हो।
अपने घर के राज़ किसी को न बताएं। यदि आपको अपने प्लान की सफलता पर भरोसा है, तो किसी से सलाह न लें।
अपनी खुशी में इतना न बह जाएं कि जो कुछ आपके पास है वह बांट दें, और न ही अपने ग़म में इतना खो जाएं कि अपने पास की हर बात उजागर कर दें।
अपने गुस्से में अपनी ज़ुबान पर काबू रखें, और अपनी खुशी में अपने जज़्बात पर।
कुरान, नहजुल बलाग़ा, गीता, बाइबिल, रामचरितमानस और वेदों में उपरोक्त विषय यानी "अपनी व्यक्तिगत जानकारी और राज़ को सुरक्षित रखने" के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कही गई हैं। नीचे प्रत्येक ग्रंथ से संबंधित विचारों की तफ़सीर प्रस्तुत है:
1. कुरान:
कुरान में अपनी बातों और राज़ों को संभालने पर जोर दिया गया है।
सुरह अल-हुजरात (49:12):
"ऐ ईमानवालों! बहुत अधिक गुमान से बचो, क्योंकि कुछ गुमान पाप होते हैं। और न ही किसी की टोह में लगो और न ही एक-दूसरे की पीठ पीछे बुराई करो।"
यह आयत सिखाती है कि दूसरों के बारे में जानने या अपनी बातें दूसरों को बताने से बचना चाहिए, ताकि फितना (अशांति) न फैले।
सुरह अल-इसरा (17:53):
"और मेरे बंदों से कह दो कि वे वह बात कहें जो सबसे अच्छी हो। शैतान उनके बीच फूट डाल देता है।"
इससे यह शिक्षा मिलती है कि अपने शब्दों और राज़ों पर नियंत्रण रखें।
2. नहजुल बलाग़ा:
हज़रत अली (अ.स) के कई कथन इस विषय पर रोशनी डालते हैं:
हिकमत 182:
"तुम्हारा राज़ तुम्हारा क़ैदी है। यदि तुमने उसे प्रकट कर दिया तो तुम उसके क़ैदी बन जाओगे।"
यह वाक्य स्पष्ट करता है कि जब तक आप अपने राज़ को छुपाकर रखते हैं, वह आपकी शक्ति में रहता है।
हिकमत 322:
"अपने विचारों और योजनाओं को दूसरों से छुपाकर रखो, क्योंकि हर व्यक्ति आपके पक्ष में नहीं होता।"
यह हिदायत देती है कि व्यक्तिगत योजनाओं और कमजोरियों को दूसरों के सामने उजागर न करें।
3. गीता:
गीता में आत्मसंयम और विवेक पर जोर दिया गया है।
भगवद गीता (6.5):
"मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा उठाना चाहिए और स्वयं अपने को गिराना नहीं चाहिए। क्योंकि आत्मा ही मनुष्य की मित्र है और आत्मा ही मनुष्य की शत्रु है।"
यह संदेश देता है कि व्यक्ति को अपनी भावनाओं और विचारों पर नियंत्रण रखना चाहिए, ताकि वे दूसरों के हाथों में न जाएं।
गीता (17.15):
"वाणी का तप सत्य बोलने में है, जो प्रिय और हितकारी हो।"
इससे यह शिक्षा मिलती है कि जो बात न तो प्रिय है और न लाभकारी, उसे साझा नहीं करना चाहिए।
4. बाइबिल:
बाइबिल में भी अपने शब्दों और विचारों पर नियंत्रण रखने की बात कही गई है।
प्रभु के उपदेश (मत्ती 7:6):
"पवित्र चीजों को कुत्तों के आगे न डालो, और अपने मोती सूअरों के सामने मत डालो, वरना वे उन्हें अपने पैरों तले रौंद देंगे और फिर मुड़कर तुम्हें फाड़ डालेंगे।"
यह सिखाता है कि हर बात हर किसी से साझा नहीं करनी चाहिए, क्योंकि लोग इसका दुरुपयोग कर सकते हैं।
नीतिवचन (13:3):
"जो अपनी जुबान पर काबू रखता है, वह अपना जीवन सुरक्षित रखता है। लेकिन जो बेतरतीब बातें करता है, वह स्वयं को नष्ट करता है।"
इससे यह शिक्षा मिलती है कि शब्दों और राज़ों को सोच-समझकर साझा करना चाहिए।
5. रामचरितमानस:
गोस्वामी तुलसीदास ने भी अपनी बातों और राज़ों को संभालने पर जोर दिया है।
लंका कांड:
"सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥"
(मूर्ख के सामने विनम्रता, कुटिल के साथ मित्रता और लोभी के सामने अपनी संपत्ति को प्रकट करना हानिकारक है।)
यह सिखाता है कि अपने राज़ों और धन को ऐसे लोगों से साझा न करें जो आपको हानि पहुंचा सकते हैं।
अयोध्या कांड:
"गुप्त बात प्रिय बय जिमि। प्रगट होइ दुखद सब केमि॥"
(गुप्त बातें यदि प्रकट हो जाती हैं, तो वे सभी के लिए दुःख का कारण बनती हैं।)
इससे यह शिक्षा मिलती है कि अपने रहस्यों को गुप्त रखना ही सही है।
6. वेद:
वेदों में आत्मज्ञान और मौन पर बल दिया गया है।
ऋग्वेद (10.71.4):
"मौन रहने वाला व्यक्ति ही बुद्धिमान होता है। जो आवश्यक हो, वही बोले और व्यर्थ बातों से बचे।"
यह वाणी और रहस्यों को संभालने की शिक्षा देता है।
अथर्ववेद (12.1.45):
"जो अपने रहस्यों की रक्षा करता है, वह सुरक्षित रहता है।"
यह स्पष्ट रूप से सिखाता है कि अपनी कमजोरियों को दूसरों से छुपाकर रखें।
हर धार्मिक ग्रंथ इस बात पर जोर देता है कि अपने राज़ और योजनाओं को गुप्त रखना व्यक्ति की सुरक्षा और सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक है। संयम, विवेक और सीमाओं का पालन सभी धर्मों में नैतिक जीवन का आधार माना गया है।
आने वाले समय का ध्यान रखें, और वर्तमान पर नज़र बनाए रखें।
यह मात्र एक सलाह है।