पीठ पर छुरी: आतंकवाद पर हमदर्दी का नया खेल,हमले के बाद इजराइल अमेरिका की नई साजिश, अब भारत दोबारा गुलाम नहीं होगा

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रिपोर्ट:सैयद रिज़वान मुस्तफा 

एक बार फिर वही पुरानी कहानी दोहराई गई।
पहलगाम, कश्मीर की वादियों में घुमने आए निर्दोष टूरिस्टों पर आतंकियों ने कायराना हमला कर दिया।
रक्तरंजित भारत को सांत्वना देने के बहाने कुछ देश —
अमेरिका, इजरायल और उनके सहयोगी —
अब बड़ी चालाकी से हमदर्दी का नकाब पहनकर भारत में घुसने का रास्ता बना रहे हैं।

लेकिन हमें इतिहास से सीखना होगा —
हमदर्दी के पीछे अक्सर गुलामी के जाल छिपे होते हैं।


अमेरिका और इजरायल: आतंकवाद के जनक

  • आज की दुनिया का कोई भी संघर्ष क्षेत्र उठाइए —
    चाहे वह अफगानिस्तान हो, इराक हो, सीरिया हो या यमन —
    हर जगह अमेरिका और इजरायल के हथियार, जासूसी उपकरण और चालाकियां मौजूद रही हैं।
  • इन देशों ने "आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई" के नाम पर
    असल में आतंकवाद को पाला, बढ़ाया और फिर "ठेकेदार" बनकर खुद को मसीहा दिखाया।

तालिबान को पैदा करने वाला कौन?
आईएसआईएस को अस्तित्व में लाने में किसका हाथ?
मध्य-पूर्व को बर्बाद करने वाली नीतियाँ किसकी?

जवाब एक ही है — अमेरिका और उसके सहयोगी।
अब यही लोग भारत को "सलाह" दे रहे हैं!


भारत को चाहिए क्या रणनीति?

आज समय है सिर्फ सहानुभूति पर भरोसा करने का नहीं,
सख्त रणनीति अपनाने का।
भारत को चाहिए:

1. दूतावासों पर NIA की कड़ी नजर

  • अमेरिका, इजरायल, ब्रिटेन जैसे देशों के दूतावासों की हर गतिविधि पर NIA और IB जैसी एजेंसियों को सतर्क निगरानी करनी चाहिए।
  • कौन किससे मिल रहा है, किस मुद्दे पर बैठकें हो रही हैं — सब पर रिपोर्टिंग अनिवार्य होनी चाहिए।

2. हमदर्दी के पीछे का एजेंडा समझें

  • जो देश आतंक फैलाने वालों पर खुलकर कार्यवाही का समर्थन नहीं करता,
  • जो पाकिस्तान जैसे आतंकी पालने वाले देश का नाम लेकर उसकी आलोचना नहीं करता,
    उसकी हमदर्दी संदेहास्पद है।

3. ईरान से प्रेरणा

  • हाल ही में जब ईरान ने पाकिस्तान के अंदर घुसकर आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमला किया,
    तो उन्होंने दुनिया को बताया कि
    "सीमा के पार से आतंकवाद बर्दाश्त नहीं करेंगे।"
  • भारत को भी आतंकवाद के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए —
    राजनीतिक निंदा नहीं, सीधी जवाबी कार्रवाई।

अमेरिका-इजरायल की वैश्विक अराजकता

  • दुनिया भर में अमेरिका और इजरायल की कंपनियां:
    • असलहा बेचती हैं,
    • साइबर अटैक कराती हैं,
    • देशों के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करती हैं,
    • फर्जी मानवाधिकार अभियानों के जरिए सरकारें गिराने की साजिशें करती हैं।
  • रिकॉर्ड्स के अनुसार:
    1980 से अब तक जिन देशों में गृहयुद्ध, विद्रोह या अस्थिरता फैली, उनमें से 80% मामलों में अमेरिकी हस्तक्षेप या हथियारों की सप्लाई का प्रत्यक्ष या परोक्ष संबंध पाया गया।

सच्चे मित्र कौन?

  • जो आपके दर्द को समझते हैं,
  • जो आतंकवाद के खिलाफ न केवल बोलते हैं, बल्कि एक्शन भी लेते हैं,
  • जो आपके दुश्मनों से दूरी बनाते हैं,
    वही सच्चे मित्र होते हैं।

ईरानरूस, जैसे देश जिन्होंने आतंक के खिलाफ स्पष्ट स्टैंड लिया,
भारत के असली सहयोगी माने जा सकते हैं —
न कि वे जो पीठ पीछे छुरा भोंकने वाले देशों से हाथ मिला चुके हैं।

होशियार रहें, संगठित रहें

"हर मुस्कराहट के पीछे सच्चाई नहीं होती, कई बार उसमें धोखा छुपा होता है।"

  • जो भी भारत के साथ हमदर्दी जताए, लेकिन आतंक फैलाने वालों की निंदा न करे —
    उसकी मंशा पर शक करना राष्ट्रभक्ति है।
  • हमें दुनिया को यह दिखाना होगा कि भारत अब किसी के शब्दजाल में फँसने वाला नहीं,
    बल्कि अपने आत्मसम्मान के साथ खड़ा राष्ट्र है।

अब वक्त है —
नमन करने का नहीं, निर्णायक एक्शन का।


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